Thursday, September 27, 2018

追求气候正义,我们必须跨越国族界线

此类灾难事件和气候变化之间的联系已经无可辩驳。30年来的科学研究,揭示了全球气温上升与极端天气事件的频次及破坏性之间的关系,令人警醒。但更大的问题在于谁来为气候变化本身买单,谁又应该为相关损害做出公正的赔偿。

这个问题很复杂,没有绝对的赢家和输家,也没有谁应该负全责,谁无可指摘。仔细想想,虽然温室气体排放者带来的经济益处和气候变化的影响往往是剥离的,但在被飓风重创的德克萨斯州,那里的财富很大一部分来自石油。虽然受风暴影响人群的贫富分布极不平衡——大部分都相对贫困,但也有一些世上最富有的人。

“气候正义”:一场漫长的追求

国际上关于气候正义的辩论通常在联合国平台上发生,主要是《联合国气候变化框架公约》( ),《巴黎协定》就是在这样的辩论中诞生的。 年成立以来, 大部分时间都把重心放在了减排上,而不是去适应气候变化造成的破坏性影响。

发达国家常被认为是造成全球变暖的元凶,因此根据“
共同但有区别责任和各自能力开时,气候变化引起的海平面上升和极端天气事件明显已经发生。适应也因此和减排一样,被提上了更高的议程。简单来说,发达世界若想就应对气候变化达成新的全面协议,就必须为欠发达的大多数人群提供充足的援助保证,不仅包括计划每年投入 亿美元的绿色气候基金,还要设置新的补偿形式,弥补容易受飓风和其他气候灾害影响的国家所遭受的损失和损害。

“损失和损害”机制虽已包含在 年的《巴黎协定》中,但尚未全面执行。该机制涉及气候变化责任甚至赔偿相关的问题,因此存在争议。直接责任很难确定,发达国家也坚决拒绝这样做。

摘下国族主义的有色眼镜

问题在于人们总是以本国利益为前提讨论这些问题,而抗击气候变化需要全球各国的共同努力,但各国各自为政的政治结构激化了观点之间的竞争和对抗。例如,外国政府援助若不利于国内抗击贫困,就很难找到立足点。

可以肯定的是,一些较为进步的富裕国家确实有一种“共有社会“倾向,认识到自己在道德上有义务帮助易受影响的国家。这超出了国际法对
避免伤害的严格最低限度,但它们也绝不会承认自己有任何直接的责任或义务。这种国际气候正义的概念最多就是基于一种认识,即不允许其他国家的民众生活在人类最低生存标准之下。这种认识在其他领域的人道主义援助和灾难救援中十分常见。

但这种基于国家的思维仍无法应对气候变化的复杂和包罗万象。我们需要改用一种“世界主义”的方法来对待气候正义。根据世界主义,我们需要关注人类个体和他们的需求与权利,人类都生活在同一个社区里。在那里,道德价值被认为与国籍无关。这就意味着孟加拉的农民或者加勒比的渔夫和德克萨斯、伦敦的每个人一样,都有权利免受全球变暖的影响。在这一意义上,世界主义的气候正义反映了国际人权原则的演变。”原则,发达国家有责任首先采取行动减少排放。气候正义被认为是发达国家对发展中国家的亏欠,因此前者必须补偿后者,后者才有动力削减排放。一种印象是,国籍可以代表整个国民的发展程度或抵御自然灾害的能力,但这种分类本质上有误导性。无论是巴布达岛,还是休斯顿,随处可见的被洪水淹没的房屋和被损坏的屋顶告诉我们,从穷人和富人(或者从安全和易受影响)的角度划分比从国家的角度划分更有用。

真正的气候正义必须把相关辩论从国家主权和国际地位引向对个人伤害的关注。建立
个人碳账单系统也有利于人们根据自己的财富和生活地位,为扶贫救灾做出一份贡献。

众多国家遭飓风席卷,受到间接影响的国家甚至更多,气候变化非常有力地告诉我们,人类需要用创造性思维看待真正的全球主义,把避免人类受苦放到国家利益之前,并且意识到,“富国”会有很多穷人和弱势群体,“穷国”也有超级富豪。

Monday, September 3, 2018

ऋतिक रोशन की बहन सुनैना रोशन ने खोले कई राज़

अमर उजाला के मुताबिक हिमाचल प्रदेश के नूरपुर थाना क्षेत्र में स्कूली छात्रा से छेड़छाड़ के शक में एक युवक की पीट पीटकर हत्या कर दी गई.
पुलिस ने मामला दर्ज कर छात्रा के परिवार के चार सदस्यों को हत्या के आरोप में गिरफ़्तार किया गया है.
पुलिस के मुताबिक आरोप है कि शनिवार सुबह स्कूल जाते समय गांव की एक लड़की के साथ धनेटी भूरिया गांव के 40 वर्षीय निरंजन सिंह ने छेड़खानी की.
आरोप है कि लड़की के परिजनों ने निरंजन की डंडों से बेरहमी से पिटाई की. बाद में निरंजन की अस्पताल पहुंचने से पहले ही मौत हो गई. बचपन में मैं और डुग्गू एक-दूसरे से बिल्कुल अलग थे. वो बहुत शर्मीला था और मैं बहुत ज़्यादा बातूनी. वो तो मेरी दोस्तों से बात करने में भी शर्माता था. लेकिन हम खूब लड़ते थे, इतनी कि हमारी मां परेशान हो जाती थी. आज वो जितना अनुशासन पसंद है, बचपन में उतना ही आलसी था. स्कूल लेट पहुंचता था, लंच के वक्त खाना सबसे देर तक खाता रहता था, छुट्टी होने पर सबसे आखिर में गेट से निकलता था. इस वजह से मैं उसपर बहुत गुस्सा करती थी. लेकि

बचपन से ही ऋतिक में डांस को लेकर गज़ब का जुनून था. वो माइकल जैक्सन की पूजा करता था. लेकिन वो दूसरों के सामने डांस करने से शर्माता था. मैं जान चुकी थी कि वो एक्टर बनना चाहता है, लेकिन पापा को उसने पोस्ट ग्रेजुएशन के बाद बताया. डुग्गू ने उन्हें कहा कि अब वो कैमरा फेस करने के लिए तैयार है. जितनी ज़िद्दी वो बचपन में था, आज भी वो उतना ही ज़िद्दी है. अगर उसने एक बार कुछ करने का ठान लिया तो उसे कोई नहीं रोक सकता. अपनी इसी इच्छा शक्ति की वजह से उसने अपने सामने आई हर चुनौती को पार कर लिया.
जब वो अपनी पहली फिल्म की तैयारी कर रहा था, तब डांस करते वक्त उसकी कमर में ऐंठन आ गई. डॉक्टर ने कहा कि ये एक आनुवंशिक विकार है. डॉक्टर ने उसे कहा कि वो एक्टर बनने की बात सोचना छोड़ दे, क्योंकि अगर वो कहीं से कूदा या डांस किया या फिल्मों में कोई एक्शन सीन किया तो वो पांच साल में व्हीलचेयर पर आ जाएगा. तब वो सिर्फ 21 साल का था, डॉक्टर की बात सुनकर उसका दिल टूट गया. लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी. वो कई डॉक्टरों से मिला. विज्ञान ने हार मान ली थी, लेकिन उसने विज्ञान को हराकर दिखा दिया. उसने खूब रिसर्च की, बहुत सी किताबें पढ़ीं और खुदको खुद ठीक किया.
डुग्गू के सामने एक और चुनौती थी. वो हकलाता था और वो ज़िंदगी भर इसके साथ नहीं जीना चाहता था. वो कहता है कि ये उसके लिए एक बड़ी लड़ाई थी. मुझे याद है कि 13 साल की उम्र में वो बैठकर घंटों तेज़-तेज़ बोला करता था, वो अकेला बाथरूम में बैठकर ऐसा करता रहता था. कभी कभी दिन-रात बैठकर वो ये करता था. 22 सालों तक मैंने उसे ये कोशिश करते देखा. वो अपनी आवाज़ रिकॉर्ड करता था और बार-बार उसे सुनता था. उसने ये अभ्यास तबतक किया जबतक वो ठीक नहीं हो गया.
वो अपने काम को लेकर हमेशा बहुत संजीदा रहा. अपनी पहली फिल्म 'कहो ना प्यार है' का एक गाना उसने 103 डिग्री बुखार में शूट किया था. उसके बारे में एक और दिलचस्प बात ये है कि अपने हर किरदार के लिए एक अलग इत्र लगाता है. क्रिश फिल्म में जब वो रोहित (बेटा) होता था तो अलग इत्र लगाता था और जब वो कृष्णा (पिता) होता था तो दूसरा इत्र लगाता था.
मेरे और डुग्गू के बीच बहुत मज़बूत कनेक्ट है. जब मुझे टीबी हुआ, तो मुझे अस्पताल में भर्ती कर लिया गया था. डॉक्टरों ने मेरे घर वालों से कहा कि अगले 36 से 48 घंटे बहुत नाज़ुक हैं. अगर ये निकल जाते हैं तो मैं खतरे से बाहर आ जाऊंगी. मां ने मुझे बाद में बताया कि ऋतिक पूरी रात मंदिर में बैठकर मेरे लिए प्रार्थना करता रहा था. इसके बाद जब मुझे कैंसर हुआ तो वो रोज़ पांच-पांच डॉक्टरों से मिलता था.
ऋतिक बहुत ही साफ दिल का इंसान है. वो कभी किसी के लिए कुछ गलत नहीं कहता. वो किसी से ज़्यादा बात नहीं करता है, अपने दर्द को अपने अंदर ही रखता है. मैंने कभी उसे ज़िंदगी से शिकायत करते नहीं देखा. ब हमें पता चला कि ऋतिक के दिमाग में खून का थक्का है और इसके लिए उसका ऑपरेशन करना होगा तो मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मैं उसके सामने कैसे जाऊं. मैं उस दिन बहुत रोई थी. मैं खुद को रोक नहीं पा रही थी, लेकिन जब ऋतिक ऑपरेशन रूम में गया तो वो मुस्कुरा रहा था.
डुग्गू ने मुझे कभी नहीं बताया कि उसने मेरे लिए क्या-क्या किया है, मुझे ये सारी बाते अपनी मां से पता चलीं. इतने सालों में भी हम दोनों के बीच कुछ नहीं बदला है. अब हम रोज़ाना नहीं मिलते और ना ही रोज़ाना बात करते हैं, लेकिन मुझे पता है कि मुझे जब भी ज़रूरत होगी, मेरा भाई मेरे साथ होगा.
उसे ये भी पता है कि मैं उसकी सबसे बड़ी आलोचक हूं. वो मुझसे कुछ भी पूछता है तो मैं ईमानदारी से उसे सलाह देती हूं.
दुनिया के लिए वो सबसे सेक्सी पुरुष होगा, लेकिन मेरे लिए वो एक प्यारा भाई, बेटा और बेहतरीन पिता है.
न मेरे इस छोटे भाई ने हमेशा ही एक बड़े भाई की तरह मेरा ख्याल रखा है. टीन-एज में मुझे अपने दोस्तों के साथ कुछ घंटों के लिए नाइट-आउट की इजाज़त थी. लेकिन इसकी भी एक शर्त थी कि जब भी मैं नाइट-आउट पर जाऊंगी तो डुग्गू मेरे साथ जाएगा. एक दिन डुग्गू को पता चल गया कि मैं उसके एक करीबी दोस्त को ही डेट कर रही हूं. उस दिन के बाद से वो लड़का डुग्गू का करीबी दोस्त नहीं रहा. डुग्गू मुझे लेकर बहुत प्रोटेक्टिव था. वो मुझ पर बराबर निगाह रखता था. उसे जब भी लगता था कि मैं कुछ गलत कर रही हूं तो वो सबसे पहले जाकर मम्मी और पापा को बता देता था. लेकिन मम्मी-पापा से डांट तो उसे भी पड़ती थी, वो इसलिए क्योंकि वो बचपन में बहुत ही ज़िद्दी था. मुझे याद है कि अगर वो किसी शॉप पर गया और उसे उसके मन का खरीद कर नहीं दिया गया तो वो ज़मीन पर लोट जाता था. लेकिन मैं ये भी कहना चाहूंगी कि वो बहुत ही मासूम था. उसकी मासूमियत उसकी पारदर्शी आंखों से साफ झलकती थी. आप साफ-साफ देख सकते थे कि वो उस वक्त क्या महसूस कर रहा है. जब भी उसे अपने मन का कुछ मिल जाता था तो वो उसे संभालकर अपने तकिए के नीचे रख लेता था. वो आज भी ऐसा है, आज भी जब वो कुछ हासिल कर लेता है तो उसके अंदर का बच्चा खुशी से नाच उठता है. छोटी-छोटी चीज़ें उसे खुशी देती हैं.